हाँ भिया अपन तो इन्दौरी हैं!
सुबह का अखबार चाय की चुस्कियों के साथ,
नाश्ते में चलते हैं पोहे जलेबी के साथ!
हाँ भिया अपन तो इन्दौरी हैं!
चाहे हो exam की चिंता या फिर हो result की ख़ुशी,
चाहे घर आई हो चमचमाती कार या फिर आँगन मैं हो नयी बाइक की बहार,
सारी खुशियों का एक ही ठिकाना, हाँ वही अपना खजराना,
हाँ भिया अपन तो इन्दौरी हैं!
स्वाद की तो बस पूछिए ही मत बात,
हो सराफे की चाट, या ५६ का हॉट-डॉग, घमंडी लस्सी हो या गुरूद्वारे वाली पानीपूरी,
क्यों आ गया ना मुंह में पानी, यही तो इंदौर की बात है जानी,
घूमने जाना हो तो मेट्रो-टैक्सी है, ज़्यादा गर्मी है तो मोनिका-गेलेक्सी है,
दाल-बाफले का जायका दिल खुश कर देगा, सर्दियों में गराडू बस यहीं मिलेगा,
हर खाने की लज्ज़त हो जाती है दूनी, जब मिले उसमें इन्दौरी सेंव-चटनी,
दिल से देते हैं प्यार की दावतें, इसलिए हमेशा शान से हम है कहते,
हाँ भिया अपन तो इन्दौरी हैं!
लालबाग यहाँ की पहचान है, राजबाड़ा इंदौर की जान है,
विजय-बल्ला अभिमान है, कांच मंदिर इंदौर की शान है,
गांधी हाल की घडी अगर पुराना समय दिखाती है,
टी.आई. की चमक शहर की तरक्की छलकाती है,
अहिल्या की नगरी है, म.प्र. का गौरव, रहेगा हमें हर पल इस पर गर्व,
हाँ भिया अपन तो इन्दौरी हैं!
(अज्ञात इन्दौरी की रचना, दिनेश भिया - जानकी नगर वालों ने भेजी)
Sunday, June 21, 2009
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