Friday, February 12, 2010

श्री रुद्राष्टकम्

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रम्हावेदाम्स्वरुपम |
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं || १ ||

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं |
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहं || २ ||

तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्रीशरीरं |
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा || ३ ||

चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालम् |
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि || ४ ||

प्रचंड प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशम् |
त्रय:शूल निर्मूलनं शूलपाणि भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं || ५ ||

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनान्ददाता पुरारी |
चिदानंद संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी || ६ ||

न यावद उमानाथ पादारविन्दं भजंतीह लोके परे वा नराणां |
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् || ७ ||

न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्य |
जरा जन्म दु:खौघ तातप्यमानं | प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो || ८ ||

श्लोक - रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये |
ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ||

Friday, January 29, 2010

कुछ इश्क था कुछ मजबूरी थी,

कुछ इश्क था कुछ मजबूरी थी, सो मैने जीवन वार दिया,
मैं कैसा ज़िन्दा आदमी था इक शख्स ने मुझको मार दिया.
इक सब्ज़ शाख गुलाब की था इक दुनिया अपने ख्वाब की था,
वो एक बहार जो आयी नहीं उसके लिये सब कुछ हार दिया.
ये सजा सजाया घर साथी मेरी जात नही मेरा हाल नही,
ऐ काश कभी तुम जान सको जो इस सुख ने आज़ार दिया.
मैं खुली हुई इक सच्चाई मुझे जानने वाले जानते हैं,
मैने किन लोगों से नफरत की मैने किन लोगों से प्यार किया.
वो इश्क बहुत मुश्किल था मगर आसान ना था यूँ जीना भी,
उस इश्क ने जिन्दा रहने का मुझे ज़र्फ दिया पिन्दार दिया.
मैं रोता हूँ और आसमान से तारे टूटते देखता हूँ,
उन लोगों पर जिन लोगों ने मेरे लोगों को आजार दिया.
मेरे बच्चों को अल्लाह रखे इन ताज़ा हवा के झोंको ने,
मैं खुश्क पेड़ खिजां का था मुझे कैसा बर्ग-ओ-बार दिया.
- उबेदुल्लाह आलीम

हम बतलायें क्या ..?

ज़ोर से बाज़ आये पर बाज़ आयें क्या,
कहते हैं हम तुमको मुंह दिखलायें क्या.
रात दिन गर्दिश मैं हैं सातों आस्मां,
हो रहेगा कुछ ना कुछ घबरायें क्या.
पूछ्ते हैं वो के गालिब कौन है,
कोई बतलाओ के हम बतलायें क्या.

- मिर्ज़ा ग़ालिब