Monday, March 23, 2009

लहजा बदल के ...

अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं,
फ़राज़ अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं.
राह-ऐ-वफ़ा में हरीफ-ऐ-खिराम कोई तो हो,
सो अपने आप से आगे निकल के देखते हैं,
ये कौन लोग है मौजूद तेरी महफिल में,
जो लालचों से तुझ,मुझको जल के देखते हैं.
ना तुझको मात है ना मुझको मात है,
तो अब के दोनों ही चालें बदल के देखते हैं.
अभी तलक तो कुंदन हुए ना राख हुए,
हम अपनी आग मैं हर रोज़ जल के देखते हैं.
बहुत दिनों से नहीं है उसकी खैर खबर,
चलो फ़राज़ को ऐ यार चल के देखते हैं.

-अहमद फराज़

7 comments:

शोभित जैन said...

आरंभ है प्रचंड...
lage raho...

shama said...

Sundar aur prabhawshalee...ek naya andaaz, ek nayee drushtee zindageeke taraf...aap kamyaab hon, ye dua hai...

Mohan Joshi said...

bahut achchha kary.. badhaiyan..

-MoJo
http://mojowrites.wordpress.com

अभिषेक मिश्र said...

अभी तलक तो कुंदन हुए ना राख हुए,
हम अपनी आग मैं हर रोज़ जल के देखते हैं.

अच्छी शुरुआत, स्वागत.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

padhkar achchha laga, narayan narayan

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बहुत ही सुन्दर रचना.......आभार

मन-एव said...

हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत धन्यवाद ... अहमद फ़राज़ एक उन्मुक्त ख़याल शायर थे, और उनकी रचनायें उन्हें अमर रखेंगी!